भारतीय परिषद अधिनियम 1909 को पारित करने के पीछे कारण
अधिनियम को पारित करने के मुख्य कारण निम्न थे :-
1892 के सुधार से असंतोष:-
1892 के सुधार अधिनियम से भारतीयों की आकांक्षा की पूर्ति नहीं हुई. व्यवस्थापिका सभा केवल वाद-विवाद का स्थल बना रहा, सरकार के निर्णयों पर उनका प्रभाव नाम मात्र का पड़ता था. निर्वाचन की व्यवस्था भी एक दिखावा मात्रा थी. परिषदों के अतिरिक्त गैर-सरकारी सदस्य भी आंसू पोंछने के समान थे. परिषदों के कार्यों एवं अधिकारों पर अनेक प्रकार के प्रतिबंध लागाये गए थे. इन त्रुटियों के कारण भारतीयों को बहुत निराशा हुई.
राष्ट्रीय आपदाओं का प्रभाव:-
1896-97 का अकाल बहुत ही विस्तृत तथा भयंकर था जिसने हजारों लोगों की जानें लीं. इसी बीच बम्बई में अनावृष्टि के कारण बहुत बड़ा अकाल पड़ा. सरकार द्वारा जनता के लिए उठाए गए कदम बहुत तुच्छ थे. उल्टे उसकी आर्थिक नीति के कारण जनता के दु:खों में बढ़ोतरी हुई. भारतीयों में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध फैले असंतोष ने इसमें और बढ़ोतरी की. यहां तक कि प्लेग-कमीश्नर को गोली मार दी गई.
कर्जन की प्रतिक्रियावादी नीति:-
अधिनियम
के मुख्य उपबंध
विधान परिषदों के आकार में बढ़ोतरी :-1910 के अधिनियम द्वारा प्रत्येक परिषद के अतिरिक्त सदस्यों की संख्या बढा़ दी गई. केन्द्रीय व्यवस्थापिका परिषद की अधिकतम संख्या 60 निर्धारित की गयी. विभिन्न प्रांतीय विधान परिषदों की अधिकतम निर्धारित सदस्य संख्या इस प्रकार थी. बम्बई, बंगाल, मद्रास, संयुक्त प्रांत, बिहार, उडी़सा के लिए 50 तथा पंजाब-20, बर्मा-30 और असम-30, पदेन सदस्य इसके अतिरिक्त थे.
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