Nature and scope of geography
भूगोल का विषय क्षेत्र (Subject matter of Geography) - भूगोल का कार्यक्षेत्र/अध्ययन क्षेत्र (scope) अत्यन्त व्यापक है, इसे प्राय: सभी विज्ञानों की जननी कहा जाता है। इसमें भौतिक पर्यावरण एवं मानवीय (या सांस्कृतिक पर्यावरण) दोनों का अध्ययन किया जाता है। लोबेक (1939 ई०) ने लिखा है- जीव एवं उसके भौतिक पर्यावरण के बीच पाये जाने वाले सम्बन्धों के अध्ययन को ही भूगोल की विषयवस्तु के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इसी प्रकार जब हम भूगोल को पृथ्वी या भू-पृष्ठ का वर्णन करनेवाला विषय कहते हैं तो इसका समावेश 'कला' (Arts) के अन्तर्गत होता है, किन्तु जब हम इसे भू-पृष्ठ के विभिन्न प्राकृतिक एवं मानवीय लक्षणों की व्यवस्था का विश्लेषण या व्याख्या करनेवाला विषय कहते हैं तो वह 'विज्ञान' (Science) के अन्तर्गत आ जाता है। इस प्रकार इसके विषय क्षेत्र का मूल आधार कला व विज्ञान दोनों के अन्तर्गत आता है।
मनुष्य प्रकृति के प्रति सर्वाधिक जिज्ञासु रहा है जैसे-जैसे मानव के सांस्कृतिक आधार का विस्तार हुआ, उसका प्रकृति के साथ सम्बन्ध अधीनता से सहयोग के रूप में बदल गया। उसके साधनों तथा तकनीकी में सुधार के साथ-साथ ज्ञान भण्डार में वृद्धि हुई। जिसके फलस्वरूप मानवीय व प्राकृतिक घटनाओं का प्रस्तुतीकरण पौराणिक से हटकर वैज्ञानिक ढंग से होने लगा। यही कारण है कि इसका सम्बन्ध विभिन्न भौतिक व सामाजिक विषयों से है, जैसे कि भू-गणित, खगोल विज्ञान, अंतरिक्ष विज्ञान, समुद्र विज्ञान, भूगर्भ-विज्ञान, जीव-विज्ञान, जलवायु-विज्ञान, भौतिकी-समाज शास्त्र, अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, इतिहास आदि। हेटनर (Hettner) ने भी कहा है "भूगोल एक त्रिविमीय (three dimensional) विज्ञान है जो अन्य विषयों से भिन्न प्रत्येक
वस्तु का तीन विभिन्न दृष्टिकोणों से अध्ययन करता है- (1) वातावरण में वस्तु विशेष की स्थिति (arrangement in space) (11) अन्य अवयवों से सम्बन्ध (relationships) तथा (i) ऐतिहासिक प्रगति (development in time), उत्पत्ति एवं विकास। अतः स्पष्ट है कि भूगोल का कार्यक्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। प्राचीन काल में सभी विषय सम्मिलित रूप से ही अध्ययन किये जाते थे। जो भूगोल विषय के ही भाग थे किन्तु गहन विश्लेषण की इच्छा ने विशिष्टीकरण की आवश्यकता को जन्म दिया, जिसने अंततः भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, समाजशास्त्र जैसे क्रमबद्ध विषयों को जन्म दिया। आज सैकड़ों विषय तथा उपविषय हैं जो प्राकृतिक व मानवीय रहस्यों को खोलने के प्रयास में लगे हुए हैं। ये सभी विषय प्रकृति एवं मानव को समग्र रूप से न देखकर अलग-अलग दृष्टिकोणों से देखते हैं, जबकि भूगोल सहयोगी विषयों से प्राप्त ज्ञान को समाहित कर अपने सिद्धान्त का प्रतिपादन करता है जिससे भूपृष्ठ पर निरन्तर घटित होने वाले परिवर्तनों की व्याख्या की जा सके। अतः सही अर्थों में भूगोल का अध्ययन-क्षेत्र अन्तर विषयक होता जा रहा है जो विश्वस्तर से स्थानीयस्तर तथा प्राचीन काल से भविष्य काल तक होने वाले स्थानिक परिवर्तनों को समझने में लगा हुआ है।